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April Month ke Kisaano Ke Kaam Hindi

amrit April 13, 2016

अप्रैल माह के कृषि कार्य.

किसान भाइयों एवं बहनों   Help Whatsapp 9814388969  modernkheti.com

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अप्रैल माह जिसे गांव में चैत्र-बैशाख भी कहा जाता है विशेषकर बैशाखी त्यौहार के लिए मशहूर है. लहराती फसलें कटाई के लिए तैयार हैं तथा मौसम बड़ा ही मनमोहक है जो लोगों में उर्जा भरने वाला है. इस माह गेहूँ की फसल की कटाई करते हैं और उसके बाद खेत को मूंग या चारे की फसल के लिये तैयार की जाती है. गन्ने में पानी देकर निदाई-गुड़ाई करते हैं, उर्वरक देते हैं. अहरह, जौ, सरसों, अलसी की कटाई की जाती है. खेत की जुताई की जाती है ताकि कीड़े मकोड़ों से पौधों की रक्षा करे. जो फसलो की कटाई हुई है, उसे सुखाकर उड़वनी कर अनाज को अच्छे से रखते हैं. कोठी, टंकी, बारदानों को अच्छी तरह साफ करने के बाद नया अनाज उनमें रखते हैं. आम के बगीचे में पानी देते हैं. नींबू जातिय पेड़ों में सिंचाई बन्द रखते हैं. केले के पौधों में चारों ओर से निकलते हुए सकर्स को निकाल दिया जाता है. ग्रीष्मकाल के भिण्डी के बीज से बुवाई करते हैं. दूसरे खड़ी फसलों की हर सप्ताह सिंचाई की जाती है. आलू, प्याज और लहसुन की खुदाई कर उनका सुरक्षित भण्डारण करे. ग्रीष्म कालीन मक्का की बोआई के समय दीमक प्रभावित क्षेत्रो में खेतो में क्लोर पायरोफोस 1.5 % चूर्ण की 25 किलो/हे. की दर से डालें. चारे के लिए जुआर,मक्का, बरबटी आदि की बोनी करें. ग्रीष्मकालीन भुट्टो के लिए मक्का (स्वीट कॉर्न) की बुवाई करें. कद्दू वर्गीय सब्जिओ में आवश्यक उर्वरक दे तथा पौध सरंक्षण के उपाय अपनाए. आइये अब विस्तार से अप्रैल माह के कृषि कार्य के विषय में जानते हैं-

 

तीन जरुरी बातें – आज के हालत में खेती करनी हैं तो वैज्ञानिक ढंग से ही करें वरना लाभ की जगह नुकसान मिल सकता हैं. वैज्ञानिक ढंग आपके सदियों से चले आ रहे तरीकों का सुधरा व लाभदायक रूप है जिससे उतनी ही भूमि में कम समय, मेंहनत व लागत से ज्यादा उपज मिलती हैं. इसके लिए आपको सिर्फ सोच बदलने की जरुरत हैं.

 

फसल चक्र योजना (आमदनी बढ़ाने का सवोत्तम उपाय) – विशेषकर छोटे व मझोले किसान जिनके पास भूमि कम हैं, अपने खेतों के लिए फसल चक्र योजना जरुर बनाएं ताकि समय पर खाद, बीज, दवाईयां व अन्य आदान खरीद सके एवं अपनी फसल को सही भाव पर सही मंडी में बेच सकें. सही फसल चक्र से खादों का सही उपयोग, बीमारियों व कीटों की रोकथाम तथा विशेषकर दलहनी फसलें उगाने से मिट्टी की सेहत भी बनती हैं. कुछ लाभदायक फसल चक्र इस प्रकार हैं-

 

हरी खाद (ढैंचा/ लोभिया/मूंग) – मक्का /धान-गेहूं. मक्का/धान-आलू-गेहूं.

 

मक्का/धान-आलू- ग्रीष्मकालीन मूंग/. धान-आलू/तोरिया- सूरजमुखी.

 

ग्रीष्मकालीन मूंगफली -आलू/तोरिया/मटर/चारा-गेहूं. इसके आलावा सब्जियां व फूल भी फसल चक्र में उगा सकते हैं.

 

मिट्टी परीक्षण (मिट्टी के विकारों का ज्योतिषी) – अप्रैल माह में खेत खाली होने पर मिट्टी के नमूनें ले लें. तीन वर्षों में एक बार अपने खेतों की मिट्टी परीक्षण जरुर कराएं ताकि मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों (नत्रजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर, जिंक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व अन्य ) की मात्रा तथा फसलों में कौन सी खाद कब व कितनी मात्रा में डालनी हैं, का पता चले. मिट्टी परीक्षण से मिट्टी में ख़राबी का भी पता चलता है ताकि उन्हें सुधारा जा सके. जैसे कि क्षारीयता को जिप्सम से, लवणीयता को जल निकास से तथा अम्लीयता को चूने से सुधारा जा सकता है. ट्यूबवैल व नहर के पानी की जांच भी हर मौसम में करवा लें ताकि पानी की गुणवत्ता का सुधार होता रहे व पैदावार ठीक हों.

 

हरी खाद बनाना (मिट्टी के लिए स्वास्थ्यवर्धक)- मिट्टी की सेहत ठीक रखने के लिए देशी गोबर की खाद या कम्पोस्ट बहुत लाभदायक है परन्तु आजकल कम पशु पालने के चक्कर में देशी खाद बहुत कम मात्रा में मिल रही हैं. इससे पैदावार में गिरावट हो रही है. देशी खाद से सूक्ष्म तत्व भी काफी मात्रा में मिल जाते है. अप्रैल में गेहूं की कटाई तथा जून में धान/मक्का की बिजाई के बीच 50-60 दिन खेत खाली रहते हैं इस समय कुछ कमजोर खेतों में हरी खाद बनाने के लिए ढैंचा, लोभिया या मूंग लगा दें तथा जून में धान रोपने से 1-2 दिन पहले या मक्का बोने से 10-15 दिन पहले मिट्टी में जुताई करके मिला दें इससे मिट्टी की सेहत सुधरती है. इस तरह बारी-बारी सभी खेतों में हरी खाद फसल लगाते व बनाते रहें. इससे बहुत लाभ होगा तथा दो मुख्य फसलों के बीच का समय का पूरा प्रयोग होगा.

 

गेहूं – फसल पकते ही उन्नत किस्म की दरातियों से या अंगद रीपर से कटाई करें जिससे थकान भी नहीं होगी और आसानी से फसल भी कट जायेगी. फसल को गहाई से पहले अच्छी तरह सुखा लें जिससे सारे दाने भूसे से अलग हो जाए तथा फफूंद न लगे. गहाई के लिए थ्रेशर की नाली 3 फुट से ज्यादा लम्बी होनी चाहिए जिसमें ढका हुआ हिस्सा 1.5 फुट से ज्यादा हो. इससे हाथ कटने की दुर्घटना से बचा जा सकता है. थ्रेशर चलाते समय नशीली वस्तु का प्रयोग न करें, ढीले कपडे न पहने, हाथ पूरा अन्दर ना डालें, रात को रोशनी का पूरा प्रबंध रखें, फसल पूरी तरह सूखी हो, यदि थ्रेशर ट्रैक्टर से चल रहा हो तो सारे पुर्जे ढके रहे व धुएं के नाली के साथ चिंगारी-रोधक का प्रबंध करें. पास में पानी, रेत व फस्ट ऐड बॉक्स जरुर रखें ताकि दुर्घटना होने पर काम आ सके. कटाई व गहाई एक साथ कंबाइन-हार्वेस्टर से भी हो जाती है. गेहूं के दानें को अच्छी तरह धूप में सुखाकर साफ़ करके व टूटे दानें को निकालकर ठंडा होने पर शाम को साफ लोहे के पात्रों में भण्डारण करें. नमी की मात्रा 10 प्रतिशत तक रखें इससे गेहूं में कीड़ा नहीं लगेगा. ऊंचे पहाडी क्षेत्र जैसे कि हिमाचल में किन्नौर जिला, कश्मीर व उतरांचल के सीमावर्ती जिलें में गेहूं अप्रैल में बोया जाता हैं तथा सितम्बर-अक्तूबर में काटा जाता है.

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साठी मक्का – साठी मक्का की पंजाब साठी-1 किस्म को पूरे अप्रैल में लगा सकते है. यह किस्म गर्मी सहन कर सकती है तथा 70 दिनों में पककर 9 क्विंटल पैदावार देती है. खेत में धान की फसल लगाने के लिए समय पर खाली हो जाता है. साठी मक्का के 6 किग्रा. बीज को 18 ग्राम वैवस्टीन दवाई से उपचारित कर 1 फुट लाइन में व आधा फुट दूरी पौधों में रखकर अंगद सीड ड्रिल से भी बीज सकते है. बिजाई पर आधा बोरा यूरिया, 1.5 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट व 1/3 बोरा म्यूरेट आप पोटास डालें. यदि पिछले वर्ष जिंक नहीं डाला तो 10 किग्रा. जिंक सल्फेट भी जरुर डालें. बेबी कार्न – इस मक्का के बिलकुल कच्चे भुट्टे बिक जाते हैं जोकि होटलें में सलाद, सब्जी, अचार, पकौड़े व सूप बनाने के काम आते हैं. यह फसल 60 दिन में तैयार हो जाती हैं तथा निर्यात भी की जाती है. बेबी कार्न की संकर प्रकाश व कम्पोजिट केसरी किस्मों के 16 किग्रा. बीज को 1 फुट लाइनों में तथा 8 इंच पौधों में दूरी रखकर बोया जाता है. खाद मात्रा साठी मक्का के बराबर ही है.

 

बसंतकालीन मूंगफली- इसकी एस जी 84 व एम 522 किस्में सिंचित हालत में अप्रैल के अंतिम सप्ताह में गेहूं की कटाई के तुरंत बाद बोयी जा सकती है जोकि अगस्त अन्त तक या सितम्बर शुरू तक तैयार हो जाती है. मूंगफली को अच्छी जल निकास वाली हल्की दोमट मिट्टी में उगाना चाहिए. 38 किग्रा. स्वस्थ दाना बीज को 200 ग्राम थीरम से उपचारित करके फिर राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करें. लाइन में 1 फुट तथा पौधों में 9 इंच की दूरी पर बीज 2 इंच से गहरा अंगद सीड ड्रिल की मदद से बो सकते है. बिजाई पर 1/4 बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट, 1/3 बोरा म्यूरेट आप पोटाश तथा 50 किग्रा. जिप्सम डालें.

 

सूरजमुखी – ऊचे पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक सूरजमुखी की ई.सी.68415 किस्म को बीज सकते हैं जो अच्छे जल निकास वाली गहरी दोमट मिट्टी तथा अम्लीय व क्षारीय स्तर को सहन कर सकती है. 5 किग्रा. बीज को भिगोकर 15 ग्राम कैप्टान से उपचारित करके 2 फुट लाइनों में व 1 फुट पौधों में दूरी रखकर 1.5-2 इंच गहरा बोएं. बिजाई पर 2/3 बोरा यूरिया व 1.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें.

 

मूंग व उड़द – पूसा बैशाखी मूंग की व मास 338 और टी 9 उड़द की किस्में गेहूं कटने के बाद अप्रैल में लगा सकते हैं. मूंग 65 दिनों में व मास 90 दिनों में धान रोपाई से पहले पक जाते हैं तथा 3-4 क्विंटल पैदावार देते हैं. मूंग के 8 किग्रा. बीज को 16 ग्राम वाविस्टीन से उपचारित करने के बाद राइजोवियम जैव खाद से उपचार करके छाया में सुखा लें. एक फुट दूर बनी नालियों में 1/4 बोरा यूरिया व 1.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालकर ढक दें फिर बीज को 2 इंच दूरी तथा 2 इंच गहराई पर बोएं. यदि बसंतकालीन गन्ना 3 फुट दूरी पर बोया है तो 2 लाइन के बीच सह-फसल के रूप में इन फसलों को बोया जा सकता है. इस स्थिति में 1/2 बोरा डी.ए.पी. सह-फसलों के लिए अतितिक्त डालें.

 

लोभिया – एप एस 68 किस्म 65-70 दिनों में तैयार हो जाती है तथा गेहूं कटने के बाद एवं धान/मक्का लगने के बीच फिट हो जाती है तथा 3 क्विंटल तक पैदावार देती है. 12 किग्रा. बीज को 1 फुट दूर लाइन में लगाएं तथा पौधों में 3-4 इंच का फासला रखें. बिजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें. 20-25 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई करें.

 

अरहर – सिंचित अवस्था में टी-21 तथा यू.पी.ए.एस. 120 किस्में अप्रैल में लग सकती है. 5 किग्रा. बीज को राइजोवियम जैव खाद के साथ उपचारित करके 1.5 फुट दूर लाइन में बोएं. बिजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें. अरहर की 2 लाइन के बीच एक मिश्रित फसल (मूंग या उडद) की लाइन भी लगा सकते हैं जोकि 60 से 90 दिन तक काट ली जाती है.

 

गन्ना – गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल में भी लगा सकते है. इसके लिए उपयुक्त किस्म सी.ओ.एच.-35 है. इसे द्वि-पंक्ति विधि से लगाएं. फसल में 1 बोरा डी.ए.पी. तथा 1 बोरा यूरिया 2-2.5 फुट दूर बनी लाइन में डालकर मिट्टी से ढक दें फिर ऊपर 35000 दो आँखों वाली या 23000 तीन आँखों वाली पोरियों (35-40 क्विंटल) को 6 प्रतिशत पारायुक्त ऐमीसान या 0.25 प्रतिशत मेंन्कोजैव के 100 लीटर पानी के घोल में 4-5 मिनट तक डुबों कर लगाएं. उपचार करने वाला व्यक्ति रबड़ के दस्ताने पहने तथा उसके हाथ में खरोंच न हो. पहली सिंचाई 6 सप्ताह बाद करें.

 

शरदकालीन गन्ना – जोकि सितम्बर-अक्तूबर में बोया गया है उसमें दीमक, कनसुआ, काली सुंडी व पाइरिल्ला के प्रकोप से बचने के लिए 500 मि.ली. डिफ्लुबेन्जुरॉन/बेन्दिओकार्ब को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडके. पाइरिल्ला की रोकथाम 3 प्रकार के परजीवी (टेट्रास्टीक्स पाइरिल्ली, आयनसिटैस पेपीलोओनस तथा काली न्मूरस पाइरिल्ली) भी प्रयोग कर सकते है.

 

मोढी व बसंतकालीन गन्ना – जोकि फरवरी में लगा है, में 1/3 नत्रजन की दूसरी क़िस्त 1 बोरा यूरिया अप्रैल में डाल दें. खेत में खाली स्थानों को पोरिया या नर्सरी में उगाएं गए पौधों से भर दें. अप्रैल में सिंचाई 10 दिन के अंतर पर करते रहे. गन्ने की 2 लाइन के बीच एक लाइन मूंग या उडद भी लगा सकते हैं जिसके लिए कोई विशेष खर्च नहीं करना पड़ता है.

 

कपास- बिजाई के लिए 21-27 डिग्री सै. तापमान सर्वोत्तम है जोकि मई में होता है परन्तु बीज 16 सै. पर भी जम जाता हैं जोकि अप्रैल माह में मिल जाता है. टिंडे बनने के लिए 27-32 डिग्री सै. दिन का तापमान तथा ठंडी रातें जरुरी हैं जोकि सितम्बर-नवम्बर का मौसम है. गेहूं के खेत खाली होते ही कपास की तैयारी शुरू कर दें. किस्मों में ए ए एच 1, एच डी 107, एच 777, एच एस 45, एच एस 6 हरियाणा में तथा संकर एल एम एच 144, एप 1861, एप 1378, एप 846, एल एच 1556, देशी एल डी 694 व 327 पंजाब में लगा सकते हैं. बीज मात्रा (रोएं रहित) संकर किस्में 1.5 किग्रा. तथा देशी किस्में 3 से 5 किग्रा. को 5 ग्राम ऐमीसान, 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाईक्लीन, 1 ग्राम सक्सीनिक तेजाब को 10 लीटर पानी के घोल में 2 घंटे रखें. फिर दीमक से बचाव के लिए 10 मि.ली. पानी में 10 मि.ली. क्लोरोपाईरीफास मिलाकर बीज पर छिड़क दें तथा 30-40 मिनट छाया में सुखाकर बीज दें. यदि क्षेत्र में जड़गलन की समस्या है तो बाद में 2 ग्राम वाविस्टीन प्रति किग्रा. बीज के हिसाब से सूखा बीज उपचार भी कर लें. कपास को खाद – बीज अंगद सीड ड्रिल या प्लान्टर की सहायता से 2 फुट लाइन में व 1 फुट पौधों में दूरी रखकर 2 इंच तक गहरा बोएं. 2-3 हप्ते बाद कमजोर व बीमार पौधों को निकाल दें. विरला करने पर पौधों की संख्या 20000 प्रति एकड़ होनी चाहिए. बिजाई पर अमेरिकन कपास में 1.5 बोरे तथा संकर किस्म में 3 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट दें. बिजाई पर सभी किस्मों में 10 किग्रा. जिंक सल्फेट भी डालें. देशी कपास में 1/2 बोरा, अमेरिकन में 3/4 बोरा तथा संकर कपास में 1.8 बोरे यूरिया डालें. पहली सिंचाई जितनी देर से हो तो अच्छा है 3 परन्तु फसल को नुकसान नहीं होना चाहिए. सिंचाई डोलियाँ बनाकर करें इससे पानी की बचत, खरपतवार नियंत्रण तथा बरसात में जल निकास ठीक रहता है. हर 15 दिन बाद खेतों से बचाने के लिए निरीक्षण करें.

 

आलू- अधिक ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में आलू अप्रैल के पहले पखवाडे में लगा सकते है. इसके लिए झुलसा रोग-रोधक कुफरी ज्योति किस्म का रोगरहित बीज लें. आलू अच्छे जल निकास वाले भूमि में ही लें. बिजाई पर 1 लीटर क्लोरपाइरीफास 35 ई.सी. को 10 किग्रा. रेत में मिलाकर खेत में छिड़कें इससे कटुआ, सफ़ेद सुंडी व दीमक पर नियंत्रण रहेगा. बिजाई के लिए ढलान के विपरीत 10 इंच दूरी पर नालियाँ बनाएं तथा 10 टन गोबर की खाद, 1 बोरा यूरिया, 5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 बोरा पोटेशियम सल्फेट डालकर मिट्टी से ढक दें. फिर आलू के बीज के मध्यम आकार के 10-12 क्विंटल 2-3 आंख वाले टुकुडों को 0.25 प्रतिशत एमिसान-6 के घोल में 6 घंटे तक डुबोकर 8-10 इंच दूरी पर लगाकर मिट्टी से ढक दें. खरपतवार नियंत्रण के लिए बिजाई के 48 घंटे के अन्दर 500 ग्राम आइसोप्रोटान 75 प्रतिशत पाउडर 300 लीटर पानी में घोलकर खेत पर छिड़क दें. बारानी क्षेत्रों में नमी बनाये रखने के लिए सूखी घास खेतों पर बिछा दें. रोगग्रस्त पौधों को निकालते रहे तथा निराई-गुड़ाई करके पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें.

 

चारा फसलें – अप्रैल माह में बोया चारा गर्मियों व बरसात में चारे की कमी नहीं आने देता. ज्वार – जे.एस.20, एस.सी.171, स्वीट सुडान घास 59-3, एच सी 260 व 308 किस्में, 200 क्विंटल हरा चारा तथा 75 क्विंटल सूखा चारा देती हैं. ज्वार का 20-24 किग्रा. बीज तथा सूडान घास का 12-14 किग्रा. बीज को 10 इंच के फासले पर लाइनों में बोएं. बिजाई पर 1 बोरा यूरिया व 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट दें. सिंचित हालत में 1/2 बोरा यूरिया बिजाई के 1 माह बाद फिर दें तथा सुडान घास में हर कटाई के बाद 1/2 बोरा यूरिया डालें. बाजरा- इसमें एच एच फी -50, 60, 67,68,94, पी सी फी 141, एच सी 4 व 10, डब्ल्यू सी सी 75 के 3-4 किग्रा. बीज 1 फुट दूर लाइन में बीजे. बाजरा के साथ लोभिया का 5 किग्रा. बीज मिलाकर भी बो सकते हैं. तथा 1 बोरा यूरिया बिजाई व आधा बोरा यूरिया 1 महीने बाद डालें इससे 50-55 दिन बाद 160 क्विंटल चारा मिल जाएगा. लोभिया – लोभिया 88 उन्नत किस्म हैं तथा 110-150 क्विंटल हरा चारा 55 से 60 दिनों में देती हैं . 25 किग्रा. बीज को 1 फुट दूर लाइन में बोएं. 15 किग्रा. लोभिया और 15 किग्रा. मक्का को मिलाकर भी बो सकते हैं. बीज को 2 ग्राम वाविस्टिन प्रति किग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें. बिजाई के साथ 1/3 बोरा यूरिया व 3 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें. ग्वार – ग्वार- 80, एफ.एस-227, एच.एफ.जी-119, एच.एफ.जी-156 किस्में 70-90 दिन में 110-140 क्विंटल हरा चारा देती हैं. सिंचित क्षेत्रों में बिजाई पर आधा बोरा यूरिया व 3 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें. संकर हाथी घास – नेपियर बाजरा संकर-21, पी.वी.एन-233 व 83 किस्में 1000 क्विंटल चारा पूरे साल भर देती हैं. इसे जड़ों या तनों के टुकड़ों द्वारा लगाया जाता है. 20 इंच लम्बे 2-3 गाठों वाले 11000 टुकड़े 2.5 फुट लाइन में तथा 2 फुट दूरी पौधों में रखें. रोपाई से पहले 20 टन सड़ी-गली गोबर की खाद 5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1.5 बोरे यूरिया डालें. हर कटाई के बाद 1.5 बोरे यूरिया डालें. मक्का – किस्म जे-1006 उन्नत हैं जोकि 50-60 दिन बाद 165 क्विंटल हरा चारा देती है. इसके 30 किग्रा. बीज को 1 फुट दूर लाइन में बोएं तथा एक बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट व 1/3 म्यूरेट आप पोटास डालें.

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बागवानी – नींबू में 1 वर्ष के पौधों के लिए 2 किग्रा. कम्पोस्ट तथा 50 ग्राम यूरिया प्रति पौधा दें. यह मात्रा आयु के हिसाब से गुणा कर दें. परन्तु 10 या अधिक वर्ष के पौधों को सिर्फ 10 गुणा ही दें. अप्रैल में नींबू का सिल्ला, लीप माइनर और सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 300 मि.ली. मैलाथियान 50 ईसी. को 500 लीटर पानी में घोलकर छिडके. तने व फलों का गलना रोग के लिए बोर्डों मिश्रण (4:4:50 का छिड़काव करें. जस्ते की कमी के लिए 3 कि.ग्रा जिंक सल्फेट को 1.5 किग्रा. बुझा हुआ चूने के साथ 500 लीटर में घोलकर छिड़कें. अंगूर – नई लगाई वेलों में 150 ग्राम यूरिया तथा 250 ग्राम पोटेशियम सल्फेट प्रति बेल दें. पुरानी बेलों की मात्रा आयु के अनुसार गुणा कर दें. हरा तेला, पत्ता लपेट सुण्डी व पत्ते खाने वाली वीटल की रोकथाम के लिए 500 मि.ली. मैलाथियान को 500 लीटर पानी से 100 बेलों पर छिडकें. आम – फलों को गिरने से बचने के लिए यूरिया के 2 प्रतिशत घोल से पेड़ पर छिड़काव करें. मिलीबग नई कोपलें, फूलों व फलों का रस चूसकर काफी नुकसान करती हैं. नियंत्रण के लिए 500 मि.ली. मिथाइल पैराथियान 50 ई.सी. को 500 लीटर पानी में छिडके तथा नीचे गिरी या पेड़ों पर चढ़ रहे कीड़ों को इकठ्ठा करके जला दें तथा घास वगैरा साफ रखें. यदि तेला (हापर) फूल पर नजर आए तो 500 मि.ली. मैलाथियान 50 ई.सी. 500 लीटर पानी में छिड़के. ब्लैक टिप रोग से फल बेढंगे व काले हो जाते हैं इसके लिए बोरेक्स 0.6 प्रतिशत का छिड़काव करें. अमरुद – अप्रैल में सिंचाई न करें, फूलों को तोड़ दें ताकि फल मक्खी फूलों में अण्डे न दें पाए जिससे फल सड़ जाते हैं. अमरुद की सिर्फ शरदकालीन फसल ही लेनी चाहिए. बेर – बीज को अच्छी तरह तैयार की गई क्यारियों में बोएं. पौध सितम्बर तक तैयार हो जाएगी. अच्छी किस्में सिन्धुरा, नारनौल, सेव, गोला, कैथली व उमरान हैं. लीची – 100 ग्राम यूरिया प्रति पेड़ प्रति वर्ष आयु के हिसाब से डालें . आडू – अप्रैल में 100 ग्राम यूरिया प्रति पेड़ प्रति वर्ष आयु के हिसाब से डालें. पपीता – अप्रैल में पपीते की नर्सरी लगाने के लिए 40 वर्ग मीटर में 150 बीज को 6 x 6 इंच की दूरी तथा 1 इंच गहरा लगाएं. उन्नत किस्मों में सनराइज, हनीडयु, पूसा डिलीसियस, पूसा ड्वार्फ व पूसा जायंट है. नर्सरी में 1 क्विंटल देशी खाद मिलाकर शैय्या तैयार करें. बीज को 1 ग्राम कैप्टान से उपचारित करें. जब पौधे उग आए तो 0.2 प्रतिशत कैप्टान का स्प्रे करें इससे पौध आद्र्गलन से बच जायेंगे. तरबूज – तरबूज में कीड़ों के लिए 2 मि.ली. मैलाथियान प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडके. पाऊडरी मिल्ड्यु बीमारी के लिए 2 ग्राम वाविस्टीन प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़के. दवाई छिड़कने से पहले फल तोड़ लें या फिर 10 दिन बाद तोड़ें.

 

फूल – उगाने के लिए खेत तैयार कर धूप लगाएं ताकि कीड़े तथा बीमारियों की रोकथाम हो. गेंदा – के पौधें अप्रैल शुरू में लगा सकते हैं ताकि गर्मियों में फूल मिल सकें. गेंदा के फूलों की मंदिर, शादी तथा अन्य सजावटो में बहुत मांग होती है. गेंदा उगाना सबसे आसान कार्य है. इसके फूल कई दिनों तक खराब नहीं होते. इस फसल में बीमारी भी नहीं लगती. गुलाब – के फूल ग्रीष्म तथा सर्दी दोनों मौसमों में आते हैं तथा होटल व्यवसाय में इनकी बहुत मांग है. पहाड़ी क्षेत्रों में गुलाब की कटाईं-छटाई के बाद 2 बोरा यूरिया, 4 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 बोरा म्यूरेट आप पोटाश के साथ 2-3 टन कम्पोस्ट खेतों में डालें. अप्रैल में नए गुलाब के पौधे भी लगा सकते हैं. गुलाब के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. बाकी फूल -बालसम, डैजी, डाइएनयस, पारचुलका, साल्विया,सनफ्लावर, बर्विना, जीनिया इत्यादि फूल घर सजावट के लिए गमलों या क्यारियों में लगा सकते हैं.

 

औषधीय फसलें- आमदनी बढ़ाने के लिए ये फसले बहुत लाभदायक हैं. इनका दवाईयों में, शराब, खुशबू तथा सौन्दर्य पदार्थों में प्रयोग होता है. मैंथा – सिंचित हालत में मैंथा अप्रैल में लगाया जा सकता है. इसे इन फसल चक्र में आसानी से लगाया जा सकता हैं- मैंथा-आलू, मैंथा-तोरिया, मैंथा-जई तथा मैंथा-गेहूं-मक्का-आलू. गन्ने के दो लाइन के बीच भी 1 लाइन मैंथा लगा सकते हैं. उन्नत किस्मों में पंजाब सपीरमिंट-1, रसीयन मिंट, मास-1 को अच्छी जल निकास वाली दोमट दोष रहित भूमि में उगाया जा सकता है. बिजाई के लिए 1 क्विंटल जड़ के टुकड़ों को 0.1 प्रतिशत कार्बेडेजिमम 50 पाउडर घोल में 5-10 मिनट तक डुबोकर 1.5 फुट दूरी पर 2 इंच गहरी नालियों में दबा दें तथा सिंचाई करें. बिजाई से पहले 10-15 टन कम्पोस्ट, 1/3 बोरा यूरिया, 2 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट डालें बाकी यूरिया (1/3 बोरा) 40 दिन बाद तथा इतनी ही यूरिया पहली कटाई व उसके 40 दिन बाद डालें. फसल से साल में 2 कटाईयां एक जून तथा दूसरी सितम्बर में मिलती है. हल्दी – फसल को गर्म तथा नमी वाला मौसम चाहिए. अप्रैल में 6-8 क्विंटल हल्दी के बराबर कंद लेकर लाइन में 1 फुट तथा पौधों में 8 इंच दूरी पर लगाएं. बिजाई पर 10 टन कम्पोस्ट, 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1/2 बोरा सल्फेट ऑफ़ पोटाश डालें. बिजाई हल्की तथा जल्दी करें. गोडाई भी करें. फसल नवम्बर माह में पीली पड़ जाने पर कंदों को खोदकर निकाल लें. इसमें लगभग 60-80 क्विंटल पैदावार मिल जाती है. अदरक – अदरक के 4-6 किग्रा. कंद 1.5 फुट लाइन में व 1 फुट पौधों में दूरी पर लगाएं. बिजाई पर 10 टन कम्पोस्ट, 1 बोरा यूरिया, 1 बोरा डीएपी तथा 1 बोरा पोटेशियम सल्फेट बिजाई पर डालें तथा 1 बोरा यूरिया जून में गुड़ाई पर दें.

 

सब्जियां – चुलाई – की फसल अप्रैल में लग सकती है. जिसके लिए पूसा कितीं व पूसा किरण 500-600 किग्रा. पैदावार देती है. 700 ग्राम बीज को लाइनों में 6 इंच तथा पौधों में 1 इंच दूरी पर आधी इंच से गहरा न लगाएं. बिजाई पर 10 टन कम्पोस्ट, आधा बोरा यूरिया तथा 2.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें. चुलाई की कटाइयां मई से लेकर अक्तूबर तक लगेगी. हर कटाई के बाद 1/4 बोरा यूरिया डालें व सिंचाई करें. मूली – की पूसा चेतकी किस्म का 1 किग्रा. बीज 1 फुट लाइनों में तथा 4 इंच पौधों में दूरी रखें तथा आधा इंच से गहरा न लगाएं. बिजाई पर आधा बोरा यूरिया, 1 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट तथा आधा बोरा म्यूरेट आप पोटाश के साथ 10 टन कम्पोस्ट डालें. फसल में जल्दी-जल्दी हल्की सिंचाईयां करें. फसल मई में तैयार होकर 1000 किग्रा. से अधिक पैदावार देती है. ग्वार – कलियों के लिए पूसा सदाबहार, पूसा मौसमी व पूसा नवबहार किस्में अप्रैल में लगा सकते है. 8-10 किग्रा. बीज को 1.5 फुट दूर लाइन में लगाएं तथा बिजाई पर 1/3 बोरा यूरिया व 2.5 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट दें. फलियाँ सब्जी के लिए जून में तैयार मिलती हैं. ककड़ी, लौकी, कद्दू, टमाटर, बैगन, टिंडा व भिन्डी- इनकी खड़ी फसलों पर यदि हरा तेला दिखाई दे तो फल तोड़कर 0.1 प्रतिशत मैलाथियान 50 ईसी का घोल फसल पर स्प्रे करें. यदि झुलसा रोग दिखाई दे तो जाइनेव 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़के. तना व फली छेदक के लिए 2 मि.ली. डिफ्लुबेन्जुरॉन/बेन्दिओकार्ब 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़के. बैगन – मैदानी क्षेत्रों में फरवरी-मार्च में लगाई नर्सरी अप्रैल में रोपी जा सकती है. पूसा भैरव व पूसा पर्पल लॉन्ग किस्में उपयुक्त हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में पूसा पर्पल क्लस्टर किस्म अप्रैल में रोपने से बढ़िया उपज देती है. फूल गोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, मटर, फ्रांसबीन व प्याज – पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में अप्रैल माह में ये सभी फसलें लगाई जाती हैं. प्याज की नर्सरी लगाकर जून माह में खेत में रोपी जा सकती हैं. मशरूम- खुम्भ बहुत कम स्थान लेती हैं तथा काफी आमदनी देती हैं. इसे उगाने के लिए गेहूं के भूसे या धान के पुआल का प्रयोग करें. हल्के भीगे पुआल में खुम्भ के बीज डालने के 3-4 हप्ते बाद खुम्भ तोड़ने लायक हो जाती है.

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