2 किलोग्राम दही करेगी 25 किलोग्राम यूरिया का मुकाबला
रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक से होनेवाले नुकसान के प्रति किसान सजग हो रहे हैं। जैविक तकनीक की बदौलत किसानों ने यूरिया से तौबा कर ली है | इसके बदले दही का प्रयोग कर किसानों ने अनाज, फल, सब्जी के उत्पादन में 25 से 30 फीसदी बढ़ोत्तरी भी की है |
25 किलोग्राम यूरिया का मुकाबला दो किलोग्राम दही ही कर रहा है | यूरिया की तुलना में दही मिश्रण का छिड़काव ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है । किसानों की माने, तो यूरिया से फसल में करीब 25 दिन तक व दही के प्रयोग से फसलों में 40 दिनों तक हरियाली रहती है।
ऐसे तैयार होता दही का मिश्रण:-
गाय के दो लीटर दूध का मिट्टी के बर्तन में दही तैयार करें । तैयार दही में पीतल या तांबे का चम्मच, कलछी या कटोरा डुबो कर रख दें। इसे ढक कर आठ से 10 दिनों तक छोड़ देना है | इसमें हरे रंग की तूतिया निकलेगी । फिर बर्तन को बाहर निकाल अच्छी तरह धो लें । बरतन धोने के दौरान निकले पानी को दही में मिला मिश्रण तैयार कर लें । दो किलो दही में तीन लीटर पानी मिला कर पांच लीटर मिश्रण बनेगा।
जरूरत के अनुसार से दही के पांच किलो मिश्रण में पानी मिला कर एक एकड़ फसल में छिड़काव होगा। इसके प्रयोग से फसलों में हरियाली के साथ-साथ लाही नियंत्रण होता है | फसलों को भरपूर मात्रा में नाइट्रोजन व फॉस्फोरस मिलता होता है | इससे पौधे अंतिम समय तक स्वस्थ रहते हैं|
सब्जी वाली फसलों में मिर्च एक प्रमुख स्थान रखती है। इसका प्रयोग सब्जी, मसाले और अचार के रूप में प्रतिदिन किसी ने किसी रूप में सम्मिलित रहता है। पिछले कुछ वर्षों से हाईब्रिड मिर्च किस्मों के प्रचलन से भले ही आमदनी में काफी मुनाफा हुआ हो तथा यह किस्में विषाणु रोगों से बचाव में भले ही सक्षम हो परन्तु रोगों व कीड़ों से मिर्च फसल को काफी नुकसान होता है। इस लेख में मिर्च की फसल के मुख्य रोग व उनकी रोकथाम के बारे में विस्तार से जानकारी दी जा रही है:
आद्र गलन (डेम्पिंग ऑफ): इस रोग का प्रकोप मिर्च की नर्सरी में भूमि जनित फफूदी के कारण होता है। यह रोग नर्सरी में नवजात पौधों को भूमि की सतह पर आक्रमण पहुंचाता है। रोग से पौधे अंकुरण से पहले और बाद में भी मर जाते हैं। ग्रसित पौधे सूख कर जमीन की सतह पर गिर जाते है। पानी की अधिकता से रोग की उग्रता बढ़ जाती है।
रोकथाम:
बुआई के लिए शुद्ध व स्वस्थ बीज काम में लेना चाहिए।
बुआई से पूर्व बीज का थिराम या कैप्टान या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार करके बोना चाहिए।
नर्सरी में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
नर्सरी में पौध उगने पर क्यारियों को 0.2 प्रतिशत (2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) कैप्टान या बाविस्टिन के घोल से सिंचाई करनी चाहिए।
2. फल का गलना व टहनी मार रोग: यह रोग कोलेटोट्राइकम नामक फफूंद से होता है। पौधे की टहनी ऊपर से सूखना शुरू करती है व नीचे तक सूखती चली जाती है। इस रोग के प्रकोप से फलो पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं तथा बाद में फल गलने लगता है। परिपक्व फलों पर भूरे धब्बे बड़े होकर चक्र का रूप धारण कर लेते हैं तथा उनका रंग काला हो जाता है। रोकथाम:· बुवाई से पूर्व थिराम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज का उपचार करें।· रोग के लक्षण दिखाई देते ही 400 ग्राम कापर अक्सीक्लोराईड या जिनेब या इण्डोफिल एम-45 को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहरायें।
जीवाणु धब्बा रोग: यह रोग एक प्रकार के जीवाणु जैन्थोमोनास से फैलता है। रोग के कारक बीज व बीमार पौधे के अवशेषों में विद्यमान रहते हैं। रोग के प्रकोप से छोटे छोटे भूरे उभार युक्त धब्बे बन जाते हैं। इन धब्बों के चारों ओर पीला घेरा बन जाता है। नमी युक्त मौसम में रोग का फैलाव अधिक होता है व नई शाखओं पर भी आक्रमण देखा जा सकता है।
रोकथाम:
स्वस्थ फसल से बीज लेकर ही बुवाई करें।
रोग के लक्षण दिखाई देते ही स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 6-8 ग्राम दवा को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ छिड़काव करना चाहिए।
मिर्च की तुडाई के बाद रोग ग्रस्त पौधों के अवशेषों को जला देना चाहिए।
मिर्च का सूखा रोग: मिर्च का यह सबसे खतरनाक रोग है जिससे पैदावार में भारी नुकसान होता है। आमतौर पर यह रोग उन खेतों में आता है जिन खेतों में हर वर्ष मिर्च की खेती की जाती है। क्योंकि इस भूमि जनित फफूद के बीजाणु पहले से ही खेतों की मिट्टी में विद्यमान होते हैं जो कि अगले वर्ष फसल में इस रोग का कारण बनते हैं। रोपाई से लेकर फसल की पूरी अवधि में किसी भी अवस्था में इस रोग के लक्षण पौधों पर देखे जा सकते हैं। शुरू में पौधों के नीचे वाली पत्तियां पीली पड़ कर नीचे गिर जाती हैं। यह बीमारी नीचे से आरम्भ होकर ऊपर की तरफ बढ़ती है। कुछ ही दिनों में सारा पौधा या पौधे का कुछ भाग बिल्कुल खत्म हो जाता है। इस रोग के लक्षण प्रायः शुरू में सारे खेत की बजाए चकतों में देखने को मिलते हैं जो धीरे-2 बाद में सारे खेत को अपनी चपेट में ले लेती है।
रोकथाम:
बिजाई से पूर्व थिराम या कैप्टान 2.5 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से बीज का उपचार करें। जिन खेतों में यह रोग अक्सर आता है वहां लम्बा फसल चक्र अपनाएं।
मई-जून के महीनों में रोगग्रस्त खेतों की गहरी जुताई करें।
रोग के लक्षण दिखाई देते ही बाविस्टिन 0.2 प्रतिशत फफूंदनाशी का घोल बनाकर रोगग्रस्त चकतों की सिंचाई करें।
विषाणु रोग: इस रोग के प्रकोप से पौधों की बढ़वार रूक जाती है। पत्तियां छोटी, मोटी व मुडी हुई हो जाती है। मौजेक में पत्तियों के ऊपर कहीं पर हल्के पीले व कहीं पर गहरे हरे धब्बे बन जाते हैं। पौधा छोटा व गुच्छे का रूप धारण कर लेता है। संक्रमित पौधों पर फूल व फल कम लगते हैं तथा आकार में भी छोटे रहते हैं। रोगों का प्रसार सफेद मक्खी, एफिड व थ्रिप्स द्वारा स्वस्थ पौधों पर होता है।
रोकथाम:
स्वस्थ और रोग रहित बीज लें।
बीमारी फैलाने वाले कीड़ों का नर्सरी व खेतो में रोकथाम करें। 400 मिलि लीटर मैलाथियान 50 ईसी. को 200-250 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड छिड़काव करें तथा 10-15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहराये।
रोगग्रस्त पौधों को शुरू में ही ध्यानपूर्वक निकालकर दबा दें।
सावधानियां:
दवाओं के घोल में किसी चिपकने वाले पदार्थ टीपाल या सेंडोविट 60-70 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से अवश्य मिला लें।
छिड़काव हमेशा बारीक फुव्वारें से करें।
छिड़काव करने से पहले फल अवश्य तोड़ लें।
आदित्य*, डॉ. आर एस जरियाल एवंडॉ. कुमुद जरियालपादप रोग विज्ञान विभागडॉ. वाई. एस. परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालयबागवानी एवं वानिकी महा विद्यालय, नेरी (हमीरपुर), हिमाचल प्रदेश-177001
Mirchi ki Paudh Lagane Ki Machine Whatsapp 9814388969
weed cutter Grass Cutter || Ghaas Khatne Ki Machine
Kharpatwar(Weed Cutter) katne Ki Machine Whatsapp 9814388969
Ashwagandha Ki Modern Kheti अश्वगंधा की मॉडर्न खेती Whatsapp Number 9814388969
अश्वगंधा को अन्य नामों से पुकारा जाता है, जैसे कि भारतीय जिनसेंग, विंटर चेरी, ज़हर गोसेबेरी आदि
वानस्पतिक नाम – विथानिया सोमनीफेरा
परिवार –सोलेनीयेसी
अश्वगंधा के औषधीय उपयोग: 1. यह अवसाद, तनाव, चिंता और अनिद्रा को कम करने के लिए बहुत सहायक उपाय है। 2. यह मेमोरी सहित ब्रेन फंक्शन को बेहतर बनाने में मदद करता है। 3. यह रक्त शर्करा के स्तर को कम कर सकता है। 4. यह पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन और प्रजनन क्षमता को बढ़ा सकता है। 5. यह सूजन (सूजन) को कम करता है 6. यह मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली के निर्माण में मदद करता है।
अश्वगंधा की पहचान:
अश्वगंधा का पौधा लगभग 1.5 मीटर लंबा होता है, जिसमें अण्डाकार, पीले हरे पत्ते होते हैं, पत्ती की लंबाई लगभग होती है। 10 सेमी लंबाई। अश्वगंधा की जड़ें मोटी लंबी और सफेद भूरे रंग की होती हैं। इसके फूल चमकीले नारंगी-लाल जामुन के आकार के छोटे बेल होते हैं।
जलवायु और मिट्टी:
1. अश्वगंधा को बोने के लिए कम उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसे रेतीली और अच्छी तरह से बहने वाली मिट्टी की जरूरत है ताकि पानी जल्दी निकल जाए। 2. अश्वगंधा को लाल, काली , दोमट मिट्टी या किसी भी प्रकार की रेतीली मिट्टी में पीएच मान 6.5 – 8.0 के बीच बोया जा सकता है।
खेती की तैयारी और बुआई: 1. भारत में, 25- 30 .C के आसपास तापमान में गर्म और आर्द्र परिस्थितियों में बारिश के मौसम की शुरुआत में इसकी खेती की जाती है। 2. 1 हेक्टेयर खेत के लिए, हमें कम से कम 5 किलोग्राम बीज चाहिए। 3. अश्वगंधा की खेती के लिए, बीज को 2 se 10 सेमी अलग रखें। 4. लगभग 15 din में बीज अंकुरित होने लगेंगे।
It can boost Testosterone & increases fertility in Men.
Acts as good remedy for building strong immune system.
Plantation of Ashwagandha
Identification of Ashwagandha Plant:
Plant of Ashwagandha is almost 1.5m long, having elliptical, yellowish green leaves, length of leaf is approx. 10 cm length. Roots of Ashwagandha are thick long and white Brownish in colour. Its flowers are tiny bell shaped followed by bright orange-red berries.
Mode of Plantation: Seed
Climate and Soil for Plant:
Ashwagandha requires less fertile soil to sown. It needs sandy and well-draining soil in a way that water will drain out quickly.
Ashwagandha can be sown in red soil, black soil, loamy soil or any type of sandy soil having pH value between 6.5 – 8.0.
Farming Preparation and sowing:
In India, it is cultivated in the beginning of rainy season in hot and humid conditions in temperature around 25 – 30 ˚C.
One(1) hectare of field, we need at least 5 kgs seeds.
For ashwagandha cultivation, plant seeds 2 cm deep and 10 cm apart.
Seeds will be start germinating in almost two weeks.
Ashwagandha Ki Modern Kheti अश्वगंधा की मॉडर्न खेती
green manure,उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग
Save modernkheti whatsapp number for latest updates ,
खेती की जानकारी के लिए हमारा whatsapp नंबर सेव करे 9814388969
परिचय
मृदा उर्वरता एवं उत्पादकता बढ़ाने में हरी खाद का प्रयोग अति प्राचीन काल से आ रहा है। सघन कृषि पद्धति के विकास तथा नकदी फसलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल बढ़ने के कारण हरी खाद के प्रयोग में निश्चय ही कमी आई, लेकिन बढ़ते ऊर्जा संकट, उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि तथा गोबर की खाद जैसे अन्य कार्बनिक स्त्रोतों की सीमित आपूर्ति से आज हरी खाद का महत्व और भी बढ़ गया है। दलहनी एवं गैर दलहनी फसलों को उनके वनस्पतिक वृद्धि काल में उपयुक्त समय पर मृदा उर्वरता एवं उतपादकता बढ़ाने के लिए जुताई करके मिट्टी में अपघटन के लिए दबाना ही हरी खाद देना है। भारतीय कृषि में दलहनी फसलों का महत्व सदैव रहा है। ये फसलें अपने जड़ ग्रन्थियों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु द्वारा वातावरण में नाइट्रोजन का दोहन कर मिट्टी में स्थिर करती है। आश्रित पौधे के उपयोग के बाद जो नाइट्रोजन मिट्टी में शेष रह जाती है उसे आगामी फसल द्वारा उपयोग में लायी जाती है। इसके अतिरिक्त दलहनी फसलें अपने विशेष गुणों जैसे भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने प्रोटीन की प्रचुर मात्रा के कारण पोषकीय चारा उपलब्ध कराने तथा मृदा क्षरण के अवरोधक के रूप में विशेष स्थान रखती है।
हरी खाद में प्रयुक्त दलहनी फसलों का महत्व:
दलहनी फसलों की जड़ें गहरी तथा मजबूत होने के कारण कम उपजाऊ भूमि में भी अच्छी उगती है। भूमि को पत्तियों एवं तनों से ढक लेती है जिससे मृदा क्षरण कम होता है। दलहनी फसलों से मिट्टी में जैविक पदार्थों की अच्छी मात्रा एकत्रित हो जाती है। हरी खाद के प्रयोग से मिट्टी नरम होती है, हवा का संचार होता है, जल धारण क्षमता में वृद्धि, खट्टापन व लवणता में सुधार तथा मिट्टी क्षय में भी सुधार आता है| भूमि को को इस खाद से मृदा जनित रोगों से भी छुटकारा मिलता है| किसानों के लिए कम लागत में अधिक फायदा हो सकता है, स्वास्थ और पर्यावरण में भी सुधार होता है| राइजोबियम जीवाणु की मौजूदगी में दलहनी फसलों की 60-150 किग्रा० नाइट्रोजन/हे० स्थिर करने की क्षमता होती है।दलहनी फसलों से मिट्टी के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में प्रभावी परिवर्तन होता है जिससे सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता एवं आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है।
हरी खाद हेतु फसलों का चुनाव :
हरी खाद के लिए उगाई जाने वाली फसल का चुनाव भूमि जलवायु तथा उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए। हरी खाद के लिए फसलों में निम्न गुणों का होना आवश्यक है।
हेतु फसल शीघ्र वृद्धि करने वाली हो।
हरी खाद के लिए ऐसी फसल होना चाहिए जिससे तना, शाखाएं और पत्तियॉ कोमल एवं अधिक हों ताकि मिट्टी में शीघ्र अपघटन होकर अधिक से अधिक जीवांश तथा नाइट्रोजन मिल सके।
फसलें मूसला जड़ों वाली हों ताकि गहराई से पोषक तत्वों का अवशोषण हो सके। क्षारीय एवं लवणीय मृदाओं में गहरी जड़ों वाली फसल अंतः जल निकास बढ़ाने में आवश्यक होती है।
दलहनी फसलों की जड़ों में उपस्थित सहजीवी जीवाणु ग्रंथियों वातावरण में मुक्त नाइट्रोजन को योगिकीकरण द्वारा पौधों को उपलब्ध कराती है।
फसल सूखा अवरोधी के साथ जल मग्नता को भी सहन करती हों
रोग एवं कीट कम लगते हो तथा बीज उत्पादन को क्षमता अधिक हो।
हरी खाद के साथ-2 फसलों को अन्य उपयोग में भी लाया जा सके।
हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनई, ढैंचा, उर्द, मॅूग, अरहर, चना, मसूर, मटर, लोबिया, मोठ, खेसारी तथा कुल्थी मुख्य है। लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में जायद में हरी खाद के रूप में अधिकतर सनई, ढैंचा, उर्द एवं मॅूग का प्रयोग ही प्रायः प्रचलित है।
हरी खाद हेतु फसलें एवं उन्नतशील प्रजातियॉ
नरेन्द्र सनई-1 कार्बनिक पदार्थ से भरपूर भूमि में 45 दिन के बाद पलटने से 60-80 किग्रा०/हे० नाइट्रोजन प्रदान करने वाली शीघ्र जैव अपघटन पारिस्थितकीय मित्रवत 25-30 टन/हे० हरित जैव पदार्थ बीज उत्पादन क्षमता 16.0 कु०/हे० प्रति पौध अधिक एवं प्रभावी जड़ ग्रंथियॉ अम्लीय, एवं सामान्य क्षारीय भूमि के लिए सहनशील तथा हरी खाद के अतिरिक्त रेशे एवं बीज उत्पादन के लिए भी उपयुक्त।
पंत ढैंचा-1 कार्बनिक पदार्थों से भरपूर 60 दिन में हरित एवं सूखा जैव पदार्थ, प्रति पौध अधिक एवं प्रभावी जड़ ग्रन्थियॉ तथा अधिक बीज उत्पादन।
हिसार ढैंचा-1 कार्बनिक पदार्थो से भरपूर, 45 दिन में अधिक हरित एवं सूखा जैव पदार्थ उत्पादन, मध्यम बीज उत्पादन, प्रति पौध अधिक एवं प्रभावी जड़ ग्रन्थियॉ। उपरोक्त प्रजातियॉ वर्ष 2003 में राष्ट्रीय स्तर पर विमोचित की गयी है। इन प्रजातियों के बीज की उपलब्धता सुनिश्चित न होने पर सनई एवं ढैंचा की अन्य स्थानीय प्रजातियों का भी प्रयोग हरी खाद के रूप में किया जा सकता है।उर्वरक प्रबन्ध हरी खाद के लिए प्रयोग की जाने वाली दलहनी फसलों में भूमि में सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता बढ़ाने के लिए विशिष्ट राइजोबियम कल्चर का टीका लगाना उपयोगी होता है। कम एवं सामान्य उर्वरता वाले मिट्टी में 10-15 किग्रा० नाइट्रोजन तथा 40-50 किग्रा० फास्फोरस प्रति हे० उर्वरक के रूप में देने से ये फसलें पारिस्थिकीय संतुलन बनाये रखने में अत्यन्त सहायक होती हैहरी खाद की फसलों की उत्पादन क्षमताहरी खाद की विभिन्न फसलों की उत्पादन क्षमता जलवायु, फसल वृद्धि तथा कृषि क्रियाओं पर निर्भर करती है। विभिन्न हरी खाद वाली फसलों की उत्पादन क्षमता निम्न सारणी में दी गयी है
हरी खाद वाली फसलों की उत्पादन क्षमता
फसल का नाम
हरे पदार्थ की मात्रा (टन प्रति हे.)
नाइट्रोजन का प्रतिशत
प्राप्त नाइट्रोजन
(किग्रा.प्रति हे.)
सनई
20-30
0.43
86-129
ढैंचा
20-25
0.42
84-105
उर्द
10-12
0.41
41-49
मूंग
8-10
0.48
38-48
ग्वार
20-25
0.34
68-85
लोबिया
15-18
0.49
74-88
कुल्थी
8-10
0.33
26-33
नील
8-10
0.78
62-78
हरी खाद देने की विधियॉ (इन सीटू)
हरी खाद की स्थानिक विधि:
इस विधि में हरी खाद की फसल को उसी खेत में उगाया जाता है जिसमें हरी खाद का प्रयोग करना होता है। यह विधि समुचित वर्षा अथवा सुनिश्चित सिंचाई वाले क्षेत्रों में अपनाई जाती है। इस विधि में फूल आने के पूर्व वानस्पतिक वृद्धि काल (40-50 दिन) में मिट्टी में पलट दिया जाता है। मिश्रित रूप से बोई गयी हरी खाद की फसल को उपयुक्त समय पर जुताई द्वारा खेत में दबा दिया जाता है।
हरी पत्तियों की हरी खाद:
इस विधि में हरी पत्तियों एवं कोमल शाखाओं को तोडकर खेत में फैलाकर जुताई द्वारा मृदा में दबाया जाता है। जो मिट्टी मे थोड़ी नमी होने पर भी सड जाती है। यह विधि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उपयोगी होंती है।
हरी खाद की गुणवत्ता बढाने के उपाय
उपयुक्त फसल का चुनाव :
जलवायु एवं मृदा दशाओं के आधार पर उपयुक्त फसल का चुनाव करना आवश्यक होता है। जलमग्न तथा क्षारीय एवं लवणीय मृदा में ढैंचा तथा सामान्य मृदाओं में सनई एवं ढैंचा दोनों फसलों से अच्छी गुणवत्ता वाली हरी खाद प्राप्त होती है। मॅूग, उर्द, लोबिया आदि अन्य फसलों से अपेक्षित हरा पदार्थ नहीं प्राप्त होता है।
हरी खाद की खेत में पलटायी का समय:
अधिकतम हरा पदार्थ प्राप्त करने के लिए फसलों की पलटायी या जुताई बुवाई के 6-8 सप्ताह बाद प्राप्त होती है। आयु बढ़ने से पौधों की शाखाओं में रेशे की मात्रा बढ़ जाती है जिससे जैव पदार्थ के अपघटन में अधिक समय लगता है।
हरी खाद के प्रयोग के बाद अगली फसल की बुवाई या रोपाई का समय:
जिन क्षेत्रों में धान की खेती होती है वहॉ जलवायु नम तथा तापमान अधिक होने से अपघटन क्रिया तेज होती है। अतः खेत में हरी खाद की फसल के पलटायी के तुरन्त बाद धान की रोपाई की जा सकती है। लेकिन इसके लिए फसल की आयु 40-45 दिन से अधिक की नहीं होनी चाहिए। लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं में ढैंचे की 45 दिन की अवस्था में पलटायी करने के बाद धान की रोपाई तुरन्त करने से अधिकतम उपज प्राप्त होती है।
समुचित उर्वरक प्रबन्ध:
कम उर्वरता वाली मृदाओं में नाइट्रोजनधारी उर्वरकों का 15-20 किग्रा०/हे० का प्रयोग उपयोगी होता है। राजोबियम कल्चर का प्रयोग करने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण सहजीवी जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है।
हरी खाद वाली फसलें:
हरी खाद के लिए दलहनी फसलों में सनैइ (सनहेम्प), ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार आदि फसलों का उपयोग किया जा सकता है। इन फसलों की वृद्धि शीघ्र, कम समय में हो जाती है, पत्तियाँ बड़ी वजनदार एवं बहुत संख्या में रहती है, एवं इनकी उर्वरक तथा जल की आवश्यकता कम होती है, जिससे कम लागत में अधिक कार्बनिक पदार्थ प्राप्त हो जाता है। दलहनी फसलों में जड़ों में नाइट्रोजन को वातावरण से मृदा में स्थिर करने वाले जीवाणु पाये जाते हैं। अधिक वर्षा वाले स्थानों में जहाँ जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सनई का उपयोग करें, ढैंचा को सूखे की दशा वाले स्थानों में तथा समस्याग्रस्त भूमि में जैसे क्षारीय दशा में उपयोग करें। ग्वार को कम वर्षा वाले स्थानों में रेतीली, कम उपजाऊ भूमि में लगायें। लोबिया को अच्छे जल निकास वाली क्षारीय मृदा में तथा मूंग, उड़द को खरीफ या ग्रीष्म काल में ऐसे भूमि में ले जहाँ जल भराव न होता हो। इससे इनकी फलियों की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है तथा शेष पौधा हरी खाद के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
डॉ. शिशुपाल सिंह*, शिवराज सिंह1, डॉ विष्णु दयाल राजपूत2रविन्द्रकुमारराजपूत3,
*प्रयोगशाला प्रभारी, कार्यालय मृदा सर्वेक्षण अधिकारी, वाराणसी मंडल, वाराणसी,
सब्जिओं की पौध तैयार करने की मशीन whatsapp 9814388969
टमाटर की पौध , प्याज की पौध ,पत्ता गोभी की पौध , फुल गोभी की पौध , मिर्ची की पौध। सभी मॅहगी पौध के बीज के जमाव के लिए ये मशीन लगाए।
Sapling machine Tomato Plant, Onion Plant, Cabbage Plant, Cauliflower Plant, Chili PlantApply these machines to the setting of seed of all the herb seeds.
किसान भइओ हमारे पास दस लाख से भी अधिक स्ट्रॉबेरी पौधे बुकिंग के लिए तैआर है और अगले साल की बुकिंग भी स्टार्ट हो चुकी है। अगले साल हम एक करोड़ पौधे तैयार करने जा रहे हैं। अच्छी पौध और अपने एरिया के लिए स्वस्थ पौध लेने के लिए हमारे साथ संपर्क करे। अपना पूरा नाम और पता हमे whatsapp करें 9814388969
हमारी पौध की क्वालिटी देखने के लिए निचे दिए गए वीडियो को देखें
Booking Strart = Plntation Time August ,September, October November
Farmer Bhaio We have more than one million strawberry plants ready for booking and next year’s bookings have also been started. Next year we are going to prepare 10 million plants. Contact us to get a good plant and healthy plant for your area. Whatsapp us your full name and address 9814388969
Watch the video below to see the quality of our plant.