chilly farming | मिर्च उत्पादन की वैज्ञानिक खेती
मिर्च उत्पादन की वैज्ञानिक खेती
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भारत में प्रमुख मिर्च उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा राजस्थान हैं | मिर्च की फसल अवधि में 130 – 150 दिन का समय लगता है, इसकी खेती के लिए के लिए उन्नतशील किस्मे: हिसार शक्ति, हिसार विजय, पंत सी-1 व् पूसा ज्वाला है।
भूमि का चयन
सामान्यतः मिर्च विविध प्रकार की मिट्टियों में उगाई जा सकती हैं, हालाँकि, जल निकास की उचित सुविधा एवं लाभकारी सूक्षम जीवों से युक्त दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है। मिर्च की फसल लम्बे समय तक जलभराव की स्थिति सहन नही कर सकती।
खेत की तैयारी
जमीन को दो से तीन बार जुताई करके, पाटा चलाकर समतल कर लेना चाहिए। गोबर की खाद खेत में पहली जुताई के साथ ही मिला लेनी चाहिए।
पौध तैयार करना तथा नर्सरी प्रबंधन
पौधशाला के लिए मई से जून व अक्टूबर से नवंबर का समय उचित होता हैं, जिसमे पौध 30-35 दिन में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है, जिसकी रोपाई के लिए प्रति एकड़ 15-20 क्यारियों की आवश्यकता पड़ती है जिनकी लम्बाई 3 मीटर व चौड़ाई 1 मीटर की होती है। मई से जून के माह में समतल क्यारियों को तैयार करें जबकि अक्टूबर से नवंबर की पौधशाला के लिए गहरी क्यारियों की आवश्यकता पड़ती है।
बीजोपचार
स्वस्थ बीज को बोने से पहले 2.5 ग्राम कैप्टान या थाइरम दवा से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित कर लेना चाहिए।
बीज की मात्रा
इसके लिए प्रति एकड़ 400 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
पौध रोपण का तरीका
मिर्च की रोपाई 60×45 सेंटीमीटर की दूरी को बनाये रखते हुए मेड़ो पर की जाती जाती है।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
प्रति एकड़ 10 टन पूर्णतः सड़ी गली गोबर की खाद व् 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 12 किलोग्राम फॉस्फोरस व् 12 किलोग्राम पोटाश को प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें। जिसमें नाइट्रोजन की एक तिहाई व फॉस्फोरस और पोटाश की पूर्ण मात्रा पौध रोपाई के साथ दें, तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा पौध रोपाई से एक माह बाद फूल आने के समय दें।
सिंचाई व कृषि क्रियाएं
पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करें, तथा दूसरी सिंचाई तीन से चार दिन पश्चात करें। दूसरी सिंचाई से पहले जहाँ पौधा न उग पाये उन स्थानों पर दोबारा से रोपाई करनी चाहिए, जबकि अगली सिंचाई वर्षा की नियमितता पर निर्भर करती है वर्षा समय से न होने पर एक से दूसरी सिंचाई में आठ से दस दिन का अंतराल होना चाहिए। मिर्च की फसल में फूल व फल की लगने की अवस्था में पानी अवश्य देना चाहिए। पहली गुड़ाई रोपाई से 25-30 दिन बाद व दूसरी फूल आने की अवस्था में करें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार के लिए स्टोम्प 30 E.C. खरपतवारनाशी का 1.5 – 1.75 लीटर प्रति एकड़ की दर से रोपाई से तीन से चार दिन के बाद छिड़काव करें।
फूल और फलों का गिरना
मिर्च की खेती में फूल तथा फलों का गिरना एक गंभीर समस्या है। जिसके लिये पौधों में अगस्त व् सितम्बर के माह में फूल और फलों का पौधों से गिरना तापमान का 35 डिग्री से अधिक होने के कारण होता है। इस समस्या को कम करने के लिए पौधों पर प्लानोफिक्स एक मिलीलीटर दवा को 4.5 लीटर पानी या नेफ़थलीन एसिटिक एसिड (NAA) 0.01 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल का पहला छिड़काव फूल के आने पर तथा दूसरा छिड़काव पहले से तीन सप्ताह बाद में करें।
फलों की तुड़ाई
मिर्च के फलों को बाजार के लिए हरी अवस्था में तोडना चाहियें तथा मसालों में इस्तेमाल के लिए फलों को पौधों पर लाल होने की अवस्था तक छोड़ देना चाहियें, इसकी उपज 300-400 किलोग्राम प्रति एकड़ सुखी लाल मिर्च है।
मिर्च के हानिकारक कीड़े व रोग:
मिर्च के महत्वपूर्ण कीट एवं प्रबंधन | ||
कीट | प्रमुख लक्षण | रोकथाम / नियंत्रण के उपाय |
दीमक | दीमक जमीन में रह कर जड़ो व् तनो को काट देते है जिसकी वजह से पौधे मुरझा कर सुख जाते है। इसका अधिकतम प्रकोप सितम्बर से नवंबर तथा फरवरी से मार्च में होता है | फसल अवशेषों को निकल दे। तथा गोबर की कच्ची खाद का प्रयोग न करें। |
चूरड़ा व् अष्टपदि | ये दोनों पत्तो से रस चूसने वाले जीव है, जिसकी वजह से पत्ते पीले पड़ जाते है तथा पौधे कमजोर हो जाते है और यह विषाणुजनित मरोडिया रोग फैलाते है। | इनकी रोकथाम के लिए मेलाथिऑन 50 EC 400 मिलीलीटर का छिड़काव 200-250 लीटर पानी में मिला कर पंद्रह से बीस दिन के अंतराल से छिड़काव करें। |
मिर्च के महत्वपूर्ण रोग एवं प्रबंधन | ||
रोग | प्रमुख लक्षण | रोकथाम / नियंत्रण के उपाय |
डेम्पिंग ऑफ़ आर्द्रगलन | यह फफूंदजनित रोग है, यह नर्सरी का बहुत गंभीर रोग है जिसमे पौधा भूमि की सतह के पास से गलकर जमीन गिर जाता है। | बीजोपचार कैप्टान या थिराम 2.5 ग्रा. दवा से 1 किलो बीज में करें। उगने के बाद पौधों को बचाने के लिए कैप्टान २ ग्रा. दवा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। |
फल का गलना व् टहनी मार रोग | यह भी फफूंदजनित रोग है, जिसमे फलो पर भूरे रंग के धब्बे पड़ कर वे गल जाते है। टहनिया ऊपर से निचे की तरफ सूखने लगती है। | बिजोचार कैप्टान या थिराम 2.5 ग्रा. दवा से 1 किलो बीज में करें। 400 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या जिनेब या इंडोफिल ऍम 45 को 200 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से 10 – 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। |
पत्ती मरोड़ और मोज़ेक (विषाणुजनित) | यह रोग विषाणु के कारण होता है जिसमे रोग के कारण पौधें की पत्तियां मोटी भद्दी होकर मुड जाती है तथा तने पर धारियां पड़ जाती है इसमें फल का आकार छोटा हो जाता है। | स्वस्थ और रोग रहित बीज का इस्तेमाल करें।
बीमारी फ़ैलाने वाले कीड़ो की नर्सरी व् खेतो में रोकथाम करे। दस से पंद्रह दिन के अंतराल पर मेलाथिऑन 50 E.C. दवा की 400 ग्राम मात्रा को 200 – 250 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें। |