Quality Seed Production 2022 || गुणबत्ता पूर्ण बीज उत्पादन में कृषिरत महिलाओं के दृस्टिकोण को सुदृढ़ बनाना

Quality Seed Production

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Quality Seed Production

गुणबत्ता पूर्ण बीज उत्पादन में कृषिरत महिलाओं के दृस्टिकोण को सुदृढ़ बनाना

डॉ लक्ष्मी प्रिया साहू, बिंदु अन्नपूर्णा , डॉ अनिल कुमार एबं डॉ उपासना साहू

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कृषि और सप्रसंकरण के सभी क्षेत्र में कृषक महिलाओं  के भूमिका बहत महत्वपूर्ण है जो घरेलु अर्थ ब्यबस्था को भी मजभूत करते हैं । किसान अपने आजिबिका या तो खेती से या पशुधन से प्राप्त करता है  जिसमे महिलाऐं दोनों में या एक मैं अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है  । हालाँकि कृषि क्षेत्र में उनकी योगदान के बाबजूद बिविन्न मुद्दे भी सामने आते  हैं जो उनके काम करने के रबैये  को धीमा,  गंभीर और एकरसता देते हैं और उसे पूर्ण क्षमता से काम करने में बढ़ा डालते हैं एबं कई मामले में उन्हें स्वास्थ्य सम्बंधित जोखिम की भी सामना करना पड़ता हैं  । यह लिंग के मुद्दे , कार्यक्षेत्र ,  आजिबिका, सामाजिक संरचना , आर्थिक स्थिति व शैक्षिक स्थिति के सन्दर्भ  में स्वरुप और आकार में अलग होते हैं  ।

कृषि महिलाओं तक संसाधनों ,सूचनाएं , सुबिधाएँ , जानकारी , उत्पाद की पहुँच और नियंत्रण का बिस्तार निर्णय लेने की भागीदारी का स्टार , उद्यमिता कौशल बढ़ने का गुंजाईश, कौशल उत्थान की मौका , लिंगा अध्यन के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है    ।

अध्ययन बताता है की बिभिन्न कृषि कार्य में कृषिगत महिलाओं की भागीदारी भारत में काफी महत्वपूर्ण है ।हाल ही में  पुरुषों के पुरुषों की बड़े पैमाने पर पलायन की बजह से घर गृहस्ती में अब उनकी भूमिका बहत बढ़ गयी है और महिला मुखिया में बढ़ोत्तरी हुई है । इसी लिए फसल उत्पादन , बीपणन , प्रबंधन , आदि कार्यो में कृषिगत महिलाओं की क्षमता निर्माण की तत्काल आबश्यकता  है । बीज, रोपण सामग्री, उर्वरक, कीटनाशक, फसल मौसम की जानकारी और खेती पर ज्ञान के लिए उनके पहुंच में भी  सुधार समान रूप से महत्वपूर्ण है। हमारे देश में एक्सटेंशन जानकारी में प्रचार-प्रसार पुरुष केंद्रित है। इस लिए  कृषि रत महिलाए  पार्श्व  स्रोत के रूप में खेती की जानकारी प्राप्त कर सकती है। ऐसी ही समान  स्थिति बीज के साथ भी मौजूद  है। उचित गुणबत्ता पूर्ण बीज और वांछनीय किस्मों के रोपण सामग्री के लिए महिलाओं की पहुंच हमेशा ही कम है। इस लिए सरकार के कार्यान्वित कृषि योजनाओं की सफलता बहुत बार गुणबत्ता पूर्ण बीज के कमी या कम पहुंच के कारण से टिकाऊ नहीं हो पाता है। इसलिए उचित गुणबत्तापूर्ण बीज की स्थानीय उपलब्धता  कृषि में महिलाओं की समुचित भागीदारी बढ़ाने के लिए  ज़रूरी  है।

गुणबत्ता पूर्ण बीज  बीज, किसी भी वनस्पति के बीज, कंद, कलमों, पौधे की महीन जड़, प्रत्यारोपण अंश आदि जो की एक नए पौधा को उगाने के लिए उपयोग किया जाता है । उचित  गुणबत्तापूर्ण बीज  वह  बीज है, जिस में अच्छे अंकुरण या उत्थान की क्षमता, वांछनीय नमी की मात्रा, एकसमान आबादी, मूल क़िस्म के अनुरूप, और जो रोग पैदा करने वाली जीवों और कीटों से मुक्त है।

पारम्परिक बीज का महत्व किसान के अधिकार की सुरक्षा के लिए बनाया गया  पौधा की किस्मों का संरक्षण और किसान के अधिकार अधिनियम -2003 (PPV & FR  Act-2003) के अनुसार किसान के द्वारा  बीज का उत्पादन, बिक्री और आदान-प्रदान किसी भी कानूनी प्रक्रिया के बिना किया जा सकता है । इसलिए  किसान द्वारा उत्पादित और बचाया बीज को पारम्परिक बीज कहा जाता है। भारत में राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य बीज निगम और राज्य बीज प्रमाणन एजेंसियों द्वारा प्रबन्धित  एक संगठित बीज उत्पादन और वितरण प्रणाली है। इस सार्वजनिक प्रणाली के समांतर, सभी आकार के निजी कंपनियों अधिक उपज देने वाली किस्मों, संकर किस्मों और उच्च मूल्य वाली फसलों की आनुवंशिक रूप से संशोधित बीज उत्पादन में काफी हद तक काम करते हैं और एक प्रमुख बाजार हिस्सेदारी पर कब्जा करते हैं । इन दोनों प्रणालियों के अलावा किसान अपने बीज उत्पादन करता हैं और पारम्परिक बीज का भारतीय बीज उद्योग में न्यूनतम 50% हिस्सेदारी है । अत: वह बीज बहुत महत्वपूर्ण है और इस की गुणवत्ता में सुधार करने की जरूरत है ।

बर्तमान  में  बीज उत्पादन में कृषि रत महिलाओं के भागीदारी प्राचीन समय में कृषि की शुरुआत से, कृषि रत महिलाओं ने बीज संग्रहण, संरक्षण और रखरखाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि हरित क्रांति के बाद  उन का महत्व अधिक उपज देने वाली किस्मों और संकर किस्मों के उपयोग के कारण कम हो गई। पुरुषों ने बीज खरीद और प्रबंधन पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है। इसलिए  कृषि रत महिलाओं की  मुख्य खेती और बीज तक पहुंच कम हो गयी और रोपाई और निराई जैसे अन्य कार्य में  प्रभुत्व बढ़ गया  जिसमे कठिन परिश्रम और खतरा प्रवृत्त गतिविधियों ज्यादा हैं ।

अधिक  गुणबत्ता पूर्ण बीज के लिए महिलाओं की पहुंच की आवश्यकता छोटे और सीमांत किसान महिलाऐं, जो खेती और घर के पास  के पोषण बगीचे बनाए रखने की  इच्छुक हैं, वे अधिक गुणबत्तापूर्ण बीज की भारी कमी का सामना  करती हैं । हालांकि गांव में बीज उपलब्ध हैं, पर फिर भी वे इसका उपयोग नहीं कर सकती हैं और इसकी खरीद के लिए वे पुरुष सदस्यों पर निर्भर हैं। बीज उत्पादन और रखरखाव गतिविधियों की समाप्ति के कारण, उनमे  बहुत कौशल का विकास नहीं हुआ।

अधिक गुणबत्ता पूर्ण बीज के लिए उनके पहुंच में सुधार करने के लिए रणनीतियाँ1. जागरूकता बढ़ानाअक्सर कृषि रत महिलाओं के द्वारा खेती में आ रही कठिनाइयों को व्यक्त करने में संकोच होता है और अधिक गुणबत्ता पूर्ण बीज की जरुरत को गंभीरता से नहीं लिया जाता है । बीज की व्यवस्था करना आम तौर पर अधिक मुश्किल हो जाता है और खेती में देरी और समझौता किया जाता है। इसलिए बीज की कमी के कारण कृषि क्षेत्र में कम भागीदारी के लिए उनकी चिंताओं को दस्तावेज़ करने और अपने जरूरत की अनुभव को आकलन करने के लिए उत्तम बीज  पर जागरूकता बढ़ाना जरूरी हो जाता है। यह कदम उनके बीज की जरूरत को पता करके कार्यक्रम तैयार करने के लिए उपयोगी माना जाता  है।

2. क्षमता निर्माण  भारत में बीज उत्पादन और वितरण प्रणाली बीज उत्पादन के लिए सभी अधिसूचित और जारी की गई स्थान विशिष्ट अधिक उपज देने वाली किस्मों का ख्याल रखता है। कई बार ऐसा होता है कि कुछ निर्दिस्ट गिने चुने किस्मों के बीज का ही उत्पादन करके किसानों को वितरित किया जाता हैं। इसमें सारे आशाजनक स्थानीय किस्में, जो  की जलवायु में उतार-चढ़ाव के अबस्था अनुकूलनीय  और कीट प्रतिरोध करने की  क्षमता  रखता है वे बीज उत्पादन श्रृंखला से बाहर हो रहे है। इसलिए उत्पादन और अधिक उपज देने वाली किस्में और स्थानीय किस्में दोनों के प्रबंधन में कृषि रत महिलाओं के क्षमता निर्माण निश्चित रूप से उत्तम पारम्परिक बीज  और इन स्थानीय प्रजातियों के संरक्षण के लिए उनके उपयोग में सुधार होगा।

3. कार्यसाधक ज्ञान कृषि फसलों, सब्जियों, फूलों के बीज और रोपण सामग्री औषधीय पौधों आदि के उत्पादन में  सामिल  महिलाओं का इसका ब्याबहारिक  ज्ञान आवश्यक है। अत: फसल के लिए मिट्टी और जलवायु की आवश्यकता, बुवाई, रोपाई, अबांछित पौधो को हटाना, पूरक परागण, फल और बीज का परिपक्वा होना, कटाई, खलिहान, प्रसंस्करण और भंडारण आदि का कदम-कदम पर प्रशिक्षण कौशल विकसित करने में मदद देगा । उचित बीज लेबलिंग और पैकिंग से उत्पादित बीज का मूल्य बढ़ेगा ।

4. समुदाय की भागीदारी  

सामुदायिक भागीदारी फायदेमंद साबित होगा। एक समुदाय में कृषि रत महिलाओं को कौशल  सिखने से  और जिम्मेदारियों के बंटवारे में ज्यादा आस्वस्त रहेंगी । इससे ज्ञान का प्रभावी रूप से पैठ बनाने में मदद करेगा।  समुदाय गांव के सभी घरों या किसानों के हित समूह, स्वयं सहायता समूह, कुछ एक  समान  मानसिकता वाली लोगों के एक समूह या एक संयुक्त परिवार से जुड़े एक इकाई हो सकता है। एक समुदाय में बीज उत्पादन तीन तरीकों से किया जा सकता है ·      बीज उत्पादन लेकिन एक समान लक्ष्य के साथ·      बराबर लाभ के बंटवारे के साथ सार्बजनिक भूमि पर बीज उत्पादन·      एक समुदाय या सभी उत्पादकों से स्वयं सहायता समूह द्वारा बीज खरीद हैंडलिंग और वितरण बीज उत्पादन का यह मॉडल से कृषि रत महिलाओं को उचित गुणवत्ता वाली बीज आसान और तत्काल पहुँच प्रदान करता है और कार्यशील पूंजी के अभाव में बिनिमय  विकल्प भी हो सकता है। तो इस तरह  खाद्य फसलें, सब्जियां और फूलों की बेशकीमती फसलों के दोनों आवश्यक बीज ग्रामीण किसानों को समान रूप से उपलब्ध हो जाएंगे। सामुदायिक स्तर  पर महिलाऐं  अधिसूचित किस्मों का प्रमाणित बीज कि अनुबंधित उत्पादन कर सकते हैं । ग्राम स्तर पर एक समुदाय में राज्य बीज निगमों के सहयोग से आसान पहुँच के लिए विपणन के डीलरशिप लिया जा सकता है।

5. संस्थागत भागीदारी गुणवत्ता पूर्ण  पारम्परिक और उन्नत किस्म की बीज उत्पादन और प्रबंधन की गतिविधियों में कृषि रत महिलाओं को शामिल करके पहुँच में सुधार लाने में, संस्थागत भागीदारी की एहम भूमिका है । मूल  बीज का प्रावधान, गुणवत्ता नियंत्रण, विलुप्त होने के कगार में रही स्थानीय प्रजातियों के रखरखाव और मूल्यांकन, विपणन सहायता, उद्यमिता विकास  की अवसरों आदि कृषि रत महिलाओं के साथ संस्थागत भागीदारी से किया जा सकता है। कृषि के सतत विकास के लिए गुणवत्ता पूर्ण बीज और रोपण सामग्री के उत्पादन पर ज्यादा ज़ोर देना आवश्यक है। आलू, कंद फसलों, गन्ना, नारियल, केला आदि जिसमे  ज्यादा बीजों की और भारी परिवहन की आवश्यकता होती है ऐसी वृक्षारोपण फसलों के अपने आसपास के क्षेत्र में या अपने क्षेत्र में उत्पादन किया जा सकता है, जिससे निवेश में बचत और लाभ अधिकतम होगा। संस्थागत भागीदारी से एक सफल क्षेत्र के इलाके का नमूना  कुशल जनशक्ति की संख्या को वृद्धि  करने में मददगार होगा ।

6. अनुबंध उत्पादनकृषि रत महिलाओं को शामिल करते हुए निजी कंपनियों, कृषि विज्ञान केन्द्र, राज्य खेतों, बीज निगमों आदि द्वारा बीज और रोपण सामग्री का अनुबंध उत्पादन बहुत सुविधाजनक हो सकता है। अनुबंध उत्पादन एक पैकेज है जो जिसमे कृषक महिलाओं को गुणबत्तापूर्ण मूल बीज, सिद्ध प्रौद्योगिकी, आश्वासन खरीद और विपणन के साथ आता है। अनुबंध उत्पादन में बड़ी चुनौती है, गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर पाने से अनुबंध को रद्द किया जा सकता है। इसलिए अनुबंध उत्पादन के  साथ में  विशेष उत्पादन के तरीके को  समझाने, कृषि रत महिलाओं में पर्याप्त कौशल के विकास और हाथ पकड़ने  के लिए संगठनात्मक समर्थन आवश्यक है ।

 

 

7. नीति आधारित समर्थन की आवश्यकता हरित क्रांति, उच्च इनपुट निर्भर अधिक उपज देने वाली किस्मों (HYVs), और संकर किस्मों के आगमन के साथ, ग्रामीण कृषि कॉर्पोरेट निर्भर हो गया। किसानों कॉरपोरेट सेक्टर और सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर सब कुछ के लिए निर्भर हो गया। स्थानीय किस्मों जो की स्थानीय जलवायु के लिए उपयुक्त हैं और परिवार के संसाधनों का उपयोग करते हुए अच्छा लाभ देने की क्षमता रखता है उनके लिए संगठित बीज गुणन प्रणाली की कमी और धीरे-धीरे परिदृश्य से बाहर होने की वजह से कुछ उन्नत और शंकर किस्मो  द्वारा प्रतिस्थापित हो रहा है।  यह कृषि को अत्यधिक जोखिम भरा निबेश बना रहा है  । इसके साथ ही यह कीमती जर्मप्लाज्म जो की ज्यादातर नए किस्मो की बिकास के लिए मूल स्रोत है वह  समाप्त हो रहा है। इस तरह से जीन पूल बहुत ही संकीर्ण होता जा रहा है जो प्रभावी पौधा प्रजनन को प्रभावित करेगा। इस लिए  खेती की स्थानीय किस्मों की सूची बनाने के लिए नीतियों, उनकी उपज क्षमता  को आकलन करना, गुणवत्ता विश्लेषण, विशिष्ट लाभ के दस्तावेज और स्थानीय लोगों को बीज उत्पादन और वितरण पर कानूनी अधिकारों का प्रदान के लिए उपयुक्त कार्यक्रमों और दृढ़ संकल्प की आबश्यकता है   । इस से बीज उत्पादन  में अधिक महिलाऐं  शामिल होंगे । इस पारम्परिक बीज की मात्रा के साथ ही, गुणात्मक सुधार कौशल, प्रशिक्षण के द्वारा बढाने  की आवश्यकता है। अबशेष  बीज के रखरखाव, उचित भंडारण वातावरण का प्रावधान, बीज गतिविधियों को अनिवार्य बनाने, बड़ी संख्या में कृषि रत महिलाओं को शामिल किया जाना  बहत  मददगार होगा। आपदा के समय पर जब पहली बुवाई क्षतिग्रस्त हो जाती है तो त्वरित बीजों की बुआई  के लिए संरक्षित  बीज के समुचित तरीके से रखरखाब, करने के लिए उचित संरक्षण ब्यबस्था को अपनाने की जरूरत है । सब्जी बीज उत्पादन में महिला स्वयं सहायता समूहों को शामिल करते हुए उन्हें बीज निगमों के अनुबंध उत्पादकों के रूप में विकसित किया जा सकता है । इस के लिए निगम की न्यूनतम भूमि आकार की आवश्यकताओं में छूट  देने की आबश्यकता  है क्यूंकि ज्यादातर महिलाओं के पास जमीन काम होती है  ।

8. पारम्परिक बीज के लिए कम गुणवत्ता के मानकोंअधिसूचित किस्मों के बीज उत्पादन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए हर ब्लॉक या पंचायत में अधिकृत मिनी बीज परीक्षण प्रयोगशालाओं के विकास किया जा जाना चाहिए। और  इन बीजों की लेबलिंग के लिए कम मानकों के विकास की आवश्यकता है। इस बुनियादी ढांचागत                               विकास से उचित गुणवत्ता वाली बीज  तक उनकी पहुंच को बढ़ाने में उपयोगी हो होगा  ।

9. महिला बीज वितरकों को बढ़ावादोनों प्रमाणित बीज और पारम्परिक बीज के खुदरा विक्रेताओं और बीज वितरकों के रूप में कृषि रत महिलाओं या महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का पहुंच स्थापित करने की दिशा में  एक महत्वपूर्ण कदम है। महिलाओं द्वारा स्थानीय लोगों की बीज की आवश्यकताओं को  बेहतर मूल्यांकन किया जाएगा और स्थानीय उत्पादकों से बीज खरीद तेजी से पूरा  किया जाएगा।

निष्कर्ष कृषि रत महिलाओं की कई समस्याएं हैं और भारत जैसे एक आपदा प्रवण देश  में उचित गुणवत्ता वाली बीज तक पहुंच बड़ी चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों से पुरुष प्रवास  कम करने के लिए  और ग्रामीण खेती को बनाए रखने के लिए बीज सुरक्षा आवश्यक है। कृषक समुदाय, कृषि विकास के कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के संयुक्त  प्रयास से कृषि रत महिलाओं की बीज समस्या को एक अबसरों में   बदल कर उन्हें प्रमुख बीज उत्पादक और वितरक बनाया जा सकता है।

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